भगवान श्रेयांसनाथ तीर्थंकर के जन्म एवं चार कल्याणकों के कारण यह प्रागैतिहासिक काल से जैन तीर्थ रहा है। यहाँ उनके गर्भ, जन्म, दीक्षा और केवलज्ञान ये चार कल्याणक हुए थे। विद्वानों का मत है कि तीर्थंकर श्रेयाँसनाथ जी का जन्म स्थान होने के कारण ही इस स्थान का नाम ‘‘सारनाथ’ पड़ गया है। सारनाथ में भगवान श्रेयाँसनाथ का एक प्राचीन दिगम्बर जैन मंदिर है। मंदिर के गर्भगृह में तीर्थंकर श्रेयांसनाथ जी की ढाई फिट ऊँची श्याम वर्ण की मनोज्ञ प्रतिमा विराजमान है उसी वेदी में आगे एक छोटी श्वेतवर्ण की श्रेयांसनाथ की प्रतिमा है। भगवान की वेदी अत्यन्त कलापूर्ण है। मुख्यवेदी के बगल में नन्दीश्वर जिनालय का फलक है जिसमें ६० प्रतिमाएँ बनी हुई हैं यह भूगर्भ से प्राप्त हुई थीं। मंदिर के कम्पाउन्ड से बाहर भारत सरकार की ओर से पुष्पोद्यान बना है। यह सारी भूमि पहले दिगम्बर जैन मंदिर की थी किन्तु समाज की लापरवाही एवं असावधानी के कारण इस विशाल भूमि पर अब सरकारी अधिकार हो गया है।
जैन मंदिर के निकट ही १०३ फिट ऊँचा एक स्तूप है, इसे सम्राट अशोक द्वारा निर्मापित कहा जाता है। भगवान श्रेयाँसनाथ की जन्मनगरी होने के कारण सम्राट् ने भगवान की स्मृति में इसे निर्मित कराया होगा यह मान्यता भी प्रचलित है। स्तूप के ठीक सामने सिंहद्वार बना हुआ है जिसके दोनों स्तम्भों पर सिंहचतुष्क बना हुआ है। सिंहों के नीचे धर्मचक्र है जिसके दार्इं ओर बैल और घोड़े की मूर्तियाँ अंकित हैं द्वार का आकार भी बड़ा कलापूर्ण है। लोक में यह मान्यता है कि इसी स्तंभ की सिंहत्रयी को भारत सरकार ने राजचिन्ह के रूप में मान्यता प्रदान की है।
पौराणिक मान्यतानुसार इस स्थान पर ग्यारहवें तीर्थंकर श्रेयांसनाथ ने धर्मचक्र प्रवर्तन किया था। यहाँ पर देवों ने उनके समवसरण की रचना की थी।सारनाथ वर्तमान में महात्मा बुद्ध की प्रथम उपदेशस्थली के रूप में जग विख्यात है एवं यहाँ बुद्ध के अनेकों मंदिर आदि हैं। यहाँ पुरातत्व की खुदाई में अनेकों बुद्धसंबंधी अवशेष एवं जैन मूतियाँ इत्यादि प्राप्त हुर्इं जो यहाँ के संग्रहालय में सुरक्षित हैं। सारनाथ अन्तर्राष्ट्रीय पर्यटन स्थल है अतः जैनधर्म के प्रचार-प्रसार हेतु भी यह अत्यन्त उपयोगी स्थल हो सकता है। काशी के जैन समाज की भावनाओं के आधार पर सारनाथ के प्रांगण में सवा ग्यारह पुट ऊँची पद्मासन चमत्कारिक प्रतिमा भगवान श्रेयांसनाथ की स्थापित हो चुकी है। पूज्य गणिनीप्रमुख श्री ज्ञानमती माताजी ने नवंबर २००२ में सारनाथ पदार्पण के अवसर पर इस परिसर का नाम ‘‘भगवान श्रेयांसनाथ धर्मस्थल’’ घोषित किया है।
तीर्थंकर श्रेयांसनाथ जी का मंदिर अत्यन्त रमणीक स्थान पर स्थित है मंदिर के चारों तरफ एवं बाहर की हरियाली का दृश्य नयनाभिराम है। वैसे यहाँ ठहरने के लिए जैन धर्मशाला बनी हुई है फिर भी अधिकतर सिंहपुरी की वंदना करने आने वाले यात्री बनारस में ही रुकते हैं। बनारस से टैम्पो, बस आदि समय-समय पर आसानी से उपलब्ध रहते हैं। सिंहपुरी की यात्रा के साथ ही ‘‘चन्द्रपुरी’’ तीर्थ की यात्रा भी लोग करते हैं अतः एक दिन में दोनों तीर्थों की वंदना हो जाती है।
Morning: 5:30 AM - 11:30 AM, Evening: 5:30 PM - 8:30 PM,
Sarnath is a place 10 km from Varanasi city near the confluence of the Ganges and the Varuna rivers in Uttar Pradesh. Singhpur, a village approximately one kilometer away from the site, was the birthplace of Shreyansanath, the Eleventh Tirthankara. It is well connected with roads.
Train: Sarnath Railway Station
Air: Varanasi Airport