About परम पुज्य सराकोद्धारक आचार्य रत्न मुनि श्री १०८ ज्ञान सागर जी महाराज
ज्ञान की संपदा से समृध्द आचार्य श्री १०८ ज्ञान सागर जी महाराज का व्यक्तित्व एक ऐसे क्रान्तिकारी साधक की अनवरत साधन यात्रा का वह अनेकान्तिक दस्तावेज है जिसने समय के नाटय गृह में अपने सप्तभंगी प्रज्ञान कं अनेको रंग बिखेरे है।
चंम्बल कं पारदर्शी नीर और उसकी गहराई ने मुरैना में 1 मई 1957 को इन महान तपस्वी का उदय उमेश के रूप में हुआ । मात्र 17 बर्ष की आयु में ब्रम्हचर्यं व्रत और 19 वर्ष की आयु में ग्यारह प्रतिमा व्रत को धारण कर 12 वर्षो तक अपने जीवन को तप की अग्नि में तपाकर कुंदन बनाया । पूज्य पिता श्री शांतिलाल जी एवं माताश्री अशर्फी देवी जो की प्रथम संतान उमेश जी ने 5 नवम्बर 1976 को सिद्धक्षेत्र सोनरगीर में क्षुल्लक दीक्षा ग्रहण की एवं अपने गुरू समाधिसम्राट आचार्य 108 श्री सुमतिसागर जी के चरणो में स्वयं को सदा सदा के लिए समर्पित कर दिया। उमेरा से रूपांतरित हुए क्षुल्लक गुणसागर जी ने कंइं वर्षो तक न्याय व्याकरण एवं सिद्धान्त कं अनेक ग्रंथो का चिंतन मनन एवं अधययन किया । तपश्चरण की कठिन और बहुआयामी साधना अपनी पूर्ण तेजस्विता के साथ अग्रसर रही | अपने उत्कर्ष की तलाश में महावीर जयंती कं पावन प्रसंग पर 31 मार्च 1988 को क्षु. श्री ने आचार्य १०८ श्री सुमतिसागर जी महाराज सें सिध्दक्षेत्र सोनरगीर दतिया म. प्र. में निग्रंन्थ मुनि दीक्षा ग्रहण की और तव आविर्भाव हुआ उस युवा कांतिदृष्टा तपस्वी का जिसे मुनि ज्ञानसागर के रूप में युग ने पहचाना । अल्प समय पश्च्यात ही 3० जनवरी 1989 को सरधना जिला-मेरठ उ.प्र. में आचार्य १०८ श्री सुमतिसागर जी ने पूज्य श्री ज्ञानसागर महाराज जी को उपाध्याय पद से सुशोभित किया।
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परम पूज्य आचार्य १०८ श्री ज्ञानसागर जी वर्तमान युग कं एक ऐसे युवा दृष्टा क्रांतिकारी विचारक जीवन सर्जक और आचार निष्ठ दिगम्बर संत है जिनके जनकल्याणी विचार जीवन की अनन्त गहराईयो, अनुभूतियो एव साधना की अनंत ऊँचाईयो सें उदभूत हो मानवीय चिंतन के सहज परिष्कार ने सन्नद्ध है । पूज्य गुरुदेव के उपदेश हमेशा जीवन समस्याओं की गहनतम साथियो के मर्म का संस्पर्श करते है। जीवन को उसकी समग्रता में जानने और समझने की कलाओं से परिचित कराते है । उनकें साधनामयी तेजस्वी जीवन को शब्दो की परिधि में बांधना संभव नही है । परम पूज्य आचार्य श्री के संदेश युगो युगो तक सम्पूर्ण मानवता का मार्गदर्शन करें, हमें अंधकार से दूर प्रकाश के बीच जाने का मार्ग बताते रहे हमारी जड़ता को इति कर हमें गतिशील बनाएं